ख़ुद को कैसे मिटाऊं
ऐ ग़मे दिल हक़ तुझे मैं क्या बताऊँ
बेजान तेरा नक़्श को मैं क्या सुनाऊं।
सिर्फ नफ़स है बेजान ज़िंदगी मे यहां
दीदा-ए-हैरां में गिरिया कैसे दिखाऊं।
नाला-ओ-फ़रीयाद करते है दरे यार में
ऐ उश्शाक़ तुझ से मैं अब क्या छुपाऊँ।
बिस्मिल मुर्गे-चमन बना ग़मे-फ़ुर्क़त में
जिगर-अफ़गार में तुझे मैं कैसे बिठाऊँ।
रुख्सत हो गई रूठ कर तूं ज़ेरे-कफ़न में
ऐ काफ़िरे-बदकेश ख़ुद को कैसे मिटाऊं।
ऐ ग़मे दिल हक़ तुझे मैं क्या बताऊँ
बेजान तेरा नक़्श को मैं क्या सुनाऊं।
सिर्फ नफ़स है बेजान ज़िंदगी मे यहां
दीदा-ए-हैरां में गिरिया कैसे दिखाऊं।
नाला-ओ-फ़रीयाद करते है दरे यार में
ऐ उश्शाक़ तुझ से मैं अब क्या छुपाऊँ।
बिस्मिल मुर्गे-चमन बना ग़मे-फ़ुर्क़त में
जिगर-अफ़गार में तुझे मैं कैसे बिठाऊँ।
रुख्सत हो गई रूठ कर तूं ज़ेरे-कफ़न में
ऐ काफ़िरे-बदकेश ख़ुद को कैसे मिटाऊं।
"प्यासा"
Post a Comment